A for Apple, B for Bunny है
M for Mummy, S for Sunny है
जो चाँद आए तुझे निहारे
तुझे रिझाने दुल्हन बनी है
सूरज की बातें सूरज ही जाने
मेरे जीवन की तू रोशनी है
तेरी हँसी मे है मेरा जीवन
और तेरे आँसू मेरी नमी है
A for Apple, B for Bunny है
M for Mummy, S for Sunny है
Written by Kunal for Sunny on 22Sept2006
Wednesday, October 11, 2006
Monday, October 09, 2006
Guljaar's
एक ही ख्वाब कई बार यूँ ही देखा मैने
तूने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाभियाँ घर की
और चली आई है बस यूँ ही मेरा हाथ पकड़कर
घर की हर चीज़ संभाले हुए अपनाए हुए तू
तू मेरे पास मेरे घर पे, मेरे साथ है सोनू.....
गुनगुनाते हुए निकली है गुसलखाने से जब भी
अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी
मेरे चेहरे पर चटक देती है तू सोनू की बच्ची.
तूने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाभियाँ घर की
और चली आई है बस यूँ ही मेरा हाथ पकड़कर
घर की हर चीज़ संभाले हुए अपनाए हुए तू
तू मेरे पास मेरे घर पे, मेरे साथ है सोनू.....
गुनगुनाते हुए निकली है गुसलखाने से जब भी
अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी
मेरे चेहरे पर चटक देती है तू सोनू की बच्ची.
Friday, October 06, 2006
स्वप्न
एक स्वप्न लिये हृदय में -
जिये जाता हुँ ये जीवन !
कि दुँ तुम्हरे जीवन को -
अलौकिक, अप्रतिम औ -
बहुआयामी, बहुधा रंग
लेखनी से करूँ शिंगार तुम्हारा -
मुस्कनों की दूं लाली तुम्हें -
शब्दों का ये परिधान -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
और छोड़ जाना बस एक फूल
जिये जाता हुँ ये जीवन !
कि दुँ तुम्हरे जीवन को -
अलौकिक, अप्रतिम औ -
बहुआयामी, बहुधा रंग
लेखनी से करूँ शिंगार तुम्हारा -
मुस्कनों की दूं लाली तुम्हें -
शब्दों का ये परिधान -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
और छोड़ जाना बस एक फूल
तुम्हारी परिभाषा
कौन हो तुम ?
नहीं जानता कुछ -
जानता हूँ तो इतना ही -
कि
तुम मेरी हो !
-Amit, 11-nov-1995
नहीं जानता कुछ -
जानता हूँ तो इतना ही -
कि
तुम मेरी हो !
-Amit, 11-nov-1995
Tuesday, October 03, 2006
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी
बॉई मैने उस रात
सीचा तुम्हारे साथ से,
शब्दों से, बातों से
देखा कल सुबह उठ कर
फूटी थी उसमें सपनीली कोपँल
आए दो छोटे, नर्म, कोमल,
हरे धानी पत्ते
आओ; आकर देखो,
दो अपने प्यार की धूप,
और बताओ मुझे -
क्या ये पौधा
बन पाएगा वृक्ष किसी दिन ?
क्या हम बैठ पाएँगें
छाँव में इसकी इक दिन ?
I wrote it in Green park, New Delhi on june 1997
बॉई मैने उस रात
सीचा तुम्हारे साथ से,
शब्दों से, बातों से
देखा कल सुबह उठ कर
फूटी थी उसमें सपनीली कोपँल
आए दो छोटे, नर्म, कोमल,
हरे धानी पत्ते
आओ; आकर देखो,
दो अपने प्यार की धूप,
और बताओ मुझे -
क्या ये पौधा
बन पाएगा वृक्ष किसी दिन ?
क्या हम बैठ पाएँगें
छाँव में इसकी इक दिन ?
I wrote it in Green park, New Delhi on june 1997
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