बुनता हूँ जब रेशा-रेशा
ख़ुद को उधेड़ता हूँ
होता जाता हूँ
ख़ुद से निकलता धागा
पर जो बुना जाता है
वह नही होता मैं
तुम जो बुने जाते हो
क्या कहीं पाते हो कभी
अपने होने में मुझको
by Nandkishor Acharya
Tuesday, June 30, 2009
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