Wednesday, November 05, 2008

बुढ़िया रे

बुढ़िया रे,

बुढ़िया, तेरे साथ तो मैंने,

जीने की हर शह बाँटी है!

दाना पानी, कपड़ा लत्ता, नींदें और जगराते सारे,

औलादों के जनने से बसने तक, और बिछड़ने तक!

उम्र का हर हिस्सा बाँटा है ----

तेरे साथ जुदाई बाँटी, रूठ, सुलह, तन्हाई भी,

सारी कारस्तानियाँ बाँटी, झूठ भी और सच भी,

मेरे दर्द सहे हैं तूने,

तेरी सारी पीड़ें मेरे पोरों में से गुज़री हैं,

साथ जिये हैं ----

साथ मरें ये कैसे मुमकिन हो सकता है ?

दोनों में से एक को इक दिन,

दूजे को शम्शान पे छोड़ के,

तन्हा वापिस लौटना होगा ।

This is by Gulzaarji

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