Thursday, September 28, 2006

आगमन

बारिश की बूंदों के साथ-
बहकर आयी महकती पवन-
खुश्बू लिये तुम्हारी पलकों की !
दरवाजे के सहारे चढी-
सोनजुही की बेल-
करने लगी अपना ऋँगार-
धारण किये फिर पीले परिधान !
हरे पौधों के बीच-
पड़ती मासूम धूप में-
महादेवी का गिल्लू-
फिर किलक उठा है-
मानो फेरा हो उस पर हाथ-
राम ने फिर एक बार !
उदास बैठी उस आम शाख पर-
वह प्यारी नन्हीं कोयल
फिर तन्मय हो गा उठी-
सबका है एक ही तो राग-
कि तुम लौट आयी हो आस-पास !!

written on 17-08-1995 by my dear husband (for me ;))

Wednesday, September 27, 2006

अन्तर

साँझ का धुँधलका,
घिरते बादल,
मद्धिम पड़ती
किरणों की रोशनी !
अधखुला, टूटा,
दरवाजा !!!
और, दरार से झाँकतीं,
कुछ अधनंगी लाशें !
भयानक चीत्कारें -
तदन्तर -
करुण क्रन्दन !
थोड़ा आक्रोश
और -
एक साँत्वना भाषण !
कल -
इसे स्वर्ग कह्ते थे
आज -
कश्मीर कह्ते हैं

written by my dear husband.

Tuesday, September 26, 2006

सर्द मौसम

सर्द मौसम,
टूटते पत्ते सरीखे / अर्ध- विश्वास ;

सुबह सीली झोपड़ी हो धूधुआती / या कि
तंद्रिल - आँख में सपने संजोए हो प्रमादा
यह् अधूरे सृजन की है आपबीती
या किसी सन्कल्पिता का शुचि इरादा /

सर्द मौसम,
अँजुरी - जल - सी छिटकती है अधर से प्यास
बोलो क्या करे अब ?

दोपहर कि एक ठहरी झील - जल की ठन्डी-गरम धुन
जो अलस आलाप मे गायी गयी हो,
या किसी उत्साह में भटकी हुयी अन्जान लडकी
दिवा - स्वप्निल - धूप सी आयी गयी हो ;

सर्द मौसम,
छुटती सदभावना - सा आपसी परिहास
बोलो क्या करे अब ?

शाम हार-थक कर - हाथ पर धर हाथ बैठी याचना सी
या हथेली के कमल से एक मिटती सी कहानी,
प्रेम - चर्चा सी जो फॅली यहाँ से वहाँ तक
प्रार्थना वह मन्दिरोँ की जो अयासित याद रह्ती हो जुबानी ;

सर्द मौसम,
गन्ध के आलोक से बिखरे हुए निःश्वास
बोलो क्या करे अब ?

written by my pujya father-in-law.