तुमने बदले हैं ज़िन्दगी के मायने,
देखा ज़िन्दगी को पनपते हुए,
अपनी आंखों से, अपने सामने,
साँसों को महसूस करते हुए !
तुम्हारी डगमगाती पावों की लय में,
मिली हमें अपनी स्थिरता,
वह मुस्कान, विश्वास और आनंद,
जिसे ढूंढा वर्षों तक, जिया इन दो सालों में,
उन छोटी उँगलियों ने,
मेरी हथेली सहलाते हुए बहुत कुछ कहा !
तुम्हारे सर के बीच में मुख छिपा कर,
स्वप्नों को ही तो जी रहें हैं हम !
तुम आधार, तुम विचार, तुम सवेरा,
तुम ही तो हमारे विश्वास का बसेरा !
नहीं आवश्यकता हमें बोधिसत्व की,
तुम ही तो अंत शाश्वात्ता की खोज का !
वह बिना बने शब्दों की भाषा का सत्य,
वह संकेतों से बनी दिशाओं का सत्य,
वह अँगुलियों से बनी स्थिरता का सत्य,
सत्य यही की तुमसे हमारा जीवन सत्य !
On eve of our son's 2nd birthday, my hubby wrote this.
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bahut hi achchhi lagi
ReplyDeletejo sach hai wo bahut sunder
saleeke se kaha gaya hai