Tuesday, September 26, 2006

सर्द मौसम

सर्द मौसम,
टूटते पत्ते सरीखे / अर्ध- विश्वास ;

सुबह सीली झोपड़ी हो धूधुआती / या कि
तंद्रिल - आँख में सपने संजोए हो प्रमादा
यह् अधूरे सृजन की है आपबीती
या किसी सन्कल्पिता का शुचि इरादा /

सर्द मौसम,
अँजुरी - जल - सी छिटकती है अधर से प्यास
बोलो क्या करे अब ?

दोपहर कि एक ठहरी झील - जल की ठन्डी-गरम धुन
जो अलस आलाप मे गायी गयी हो,
या किसी उत्साह में भटकी हुयी अन्जान लडकी
दिवा - स्वप्निल - धूप सी आयी गयी हो ;

सर्द मौसम,
छुटती सदभावना - सा आपसी परिहास
बोलो क्या करे अब ?

शाम हार-थक कर - हाथ पर धर हाथ बैठी याचना सी
या हथेली के कमल से एक मिटती सी कहानी,
प्रेम - चर्चा सी जो फॅली यहाँ से वहाँ तक
प्रार्थना वह मन्दिरोँ की जो अयासित याद रह्ती हो जुबानी ;

सर्द मौसम,
गन्ध के आलोक से बिखरे हुए निःश्वास
बोलो क्या करे अब ?

written by my pujya father-in-law.

1 comment:

  1. ye bahut marm sparshi hai
    khuda mere papa ko
    aise hi likhwata rahe

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