Friday, October 06, 2006

स्वप्न

एक स्वप्न लिये हृदय में -
जिये जाता हुँ ये जीवन !
कि दुँ तुम्हरे जीवन को -
अलौकिक, अप्रतिम औ -
बहुआयामी, बहुधा रंग
लेखनी से करूँ शिंगार तुम्हारा -
मुस्कनों की दूं लाली तुम्हें -
शब्दों का ये परिधान -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
पहना दूं एक भाव-दुकूल -
और छोड़ जाना बस एक फूल

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